उर्दू पत्रकारिता के 200 साल पूरे होने पर निशान पब्लिकेशन द्वारा “संवैधानिक मूल्यों के सशक्तीकरण में उर्दू पत्रकारिता की भूमिका” पर व्याख्यान का आयोजन
सीतापुर- उर्दू पत्रकारिता के 200 साल के सफरनामे में सीतापुर का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उर्दू पत्रकारिता की शुरुआत करने का गौरव भी सीतापुर को हासिल है। 1822 में कलकत्ता से प्रकाशित हुए उर्दू के पहले अखबार जामे- जहाँ नुमा से उर्दू पत्रकारिता की शुरुआत मानी जाती है लेकिन उससे भी पहले 1810 में सीतापुर के बाशिंदे मौलवी शेख इकराम अली ने कलकत्ता के फोर्ट विलियम कॉलेज से एक पत्र प्रकाशित कर भारत में उर्दू पत्रकारिता की शुरुआत कर दी थी। उन्हीं के नाम पर पुराने सीतापुर में शेख सराएं मोहल्ला आबाद हुआ और मशहूर शेख सराएं मस्जिद की तामीर भी उन्होंने ही शुरू करवाई थी।
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| कार्यक्रम में व्याख्यान देते वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार डॉ. सुहेल वहीद |
ये बात वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार डॉ. सुहेल वहीद ने भारत में उर्दू पत्रकारिता के 200 साल पूरे होने पर ‘निशान पब्लिकेशन’ द्वारा “संवैधानिक मूल्यों के सशक्तीकरण में उर्दू पत्रकारिता की भूमिका” विषय पर आयोजित एक व्याख्यान को संबोधित करते हुए कहीं। उन्होंने आगे कहा कि सीतापुर के उर्दू पत्रकारिता जगत में शेख इकराम अली और नादिम सीतापुरी ने इस क्षेत्र के माकी उल्लेखनीय काम किये जिसकी बुनियाद पर आज की उर्दू पत्रकारिता खड़ी है। जिस वक्त उर्दू पत्रकारिता शुरू हुई उस वक्त हिंदुस्तान में आजादी के लिए छटपटाहट थी। ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन शुरू हो चूका था और उससे आजादी के लिए जद्दोजहद भी शुरू हो चुकी थी। हिंदुस्तान में अखबार की कोई परंपरा नहीं थी, ये अंग्रेजों की देन है। ईस्ट इंडिया कम्पनी के पूर्व कर्मचारी आगस्टस इक्की ने कम्पनी द्वारा बर्खास्त किये जाने के बाद अपनी आवाज बुलंद करने के लिए पहला अंग्रेजी अखबार निकाला। उस के बाद पहला बांग्ला अखबार प्रकाशित हुआ और फिर पहला उर्दू अखबार जामे जहाँ नुमा प्रकाशित हुआ। बांग्ला और उर्दू पत्रकारिता सभी की जड़ें अंग्रेजी पत्रकारिता से जुडी हुई हैं।
ईस्ट इंडिया कम्पनी के शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद करने के लिए ही उर्दू पत्रकारिता का उदय हुआ। अगर 1822 में उर्दू पत्रकारिता और दूसरी भाषाओँ के अखबार निकलना न शुरू हुए होते तो शायद 1857 का स्वतंत्रता संग्राम न हुआ होता। जंगे आजादी में शहीद होने वाले पहले पत्रकार भी उर्दू के ही थे। दिल्ली उर्दू अखबार के सहाफी मौलवी मोहम्मद बाकर को अंग्रेजों ने तोप के मुहाने पर बाँधकर उड़ा दिया था। सन 1822 से सन 1857 के बीच का जो दौर है उसे शुद्ध पत्रकारिता का दौर कहा जाता है जिसमे अंग्रेजी, हिंदी, बांगला, उर्दू सभी भाषाओं की पत्रकारिता शामिल हैं। इन सभी अखबारों का मुख्य काम देश की आजादी के लिए जनता में अलख जगाना था।
उर्दू पत्रकारिता में संवैधानिक मूल्यों की भूमिका पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि उर्दू पत्रकारिता में संवैधानिक मूल्य वही हैं जो हिंदी पत्रकारिता में हैं या अंग्रेजी पत्रकारिता में हैं। उर्दू पत्रकारिता ने अलग से कोई मूल्य स्थापित नहीं किये बल्कि पहले से स्थापित मूल्यों को और पुख्ता करने का काम किया है। जहाँ अंग्रेजी पत्रकरित एलीट क्लास को टारगेट करती है और हिंदी पत्रकारिता आम जनता को केंद्र में रखती है वहीं उर्दू पत्रकारिता का बड़ा हिस्सा पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को केंद्रबिंदु में रखकर पत्रकारिता करता है। हिंदी अखबारों और उर्दू अखबारों में खबरों का प्रकाशन भी केन्द्रित जनता को ध्यान में रखकर किया जाता है। व्याख्यान में अनिल चौधरी, अभिषेक श्रीवास्तव और बिग्नेश्वर साहू ने भी अपनी बात रखी। इस अवसर पर ऋचा सिंह, फराज हमीद, इम्तियाज अहमद, शहाब वहीद, मोहम्मद रेहान, गौरव गुलमोहर, अमन सिद्धांत, अदनान फरीद, मोहम्मद कैफ सहित कई लोग उपस्थित रहे।
