लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने मुजफ्फर नगर और मध्य प्रदेश के गुना में कल सड़क हादसों में 14 मजदूरों की दर्दनाक मौत पर गहरा दुख व्यक्त किया है। भाकपा ने आज फिर उत्तर प्रदेश के ही विभिन्न स्थानों पर सड़क हादसों में मजदूरों की मौतों की खबरों को अंतस्तल तक हिला देने वाली बताया है। भाकपा ने इन हादसों के लिये सीधे राज्य और केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। पार्टी ने केन्द्र और राज्य सरकार के मुखियाओं से इन मौतों की नैतिक ज़िम्मेदारी लेने की मांग की है।
यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने कहा कि अनियोजित लाक डाउन में मिल रही यातनाओं से पीड़ित और उन्हें समय पर घरों तक पहुंचाने में केन्द्र और राज्य सरकारों की असफलताओं से प्रवासी मजदूरों का धैर्य टूट चुका है और वे अपनी जान हथेली पर रख कर घरों को निकल रहे हैं। अब सड़कों पर न निकलने की सत्ताधारियों की अपील और रेल- बसों से पहुंचाने के उनके बयानों का उनके लिये कोई महत्व नहीं रह गया है।
‘अब मरता क्या न करता’ की स्थिति में निकले देश के इन कर्णधारों और पूंजी के निर्माताओं को उनके रास्तों में रोका जारहा है, उनकी बची खुची पूंजी उनसे छीनी जारही है, उन्हें लाठी- डंडों से खदेड़ा जा रहा है, अपने खर्चे से जुटाये यातायात के साधन उनसे छीने जारहे हैं, उन्हें शारीरिक और सामाजिक रूप से प्रताड़ित किया जारहा है॰
उनमें से अनेक भूख, प्यास, बीमारी और थकान से जानें गंवा चुके हैं। हर रोज तमाम लोग सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवा रहे हैं। हर दर्दनाक मंजर पर उत्तर प्रदेश सरकार का एक जैसा बयान- “ मुख्यमंत्री ने घटना का संज्ञान लिया है, घटना पर दुख व्यक्त किया है, घटना की जांच के आदेश दे दिये गये हैं, म्रतको व घायलों को मुआबजे का ऐलान कर दिया गया है” आदि अब पीड़ितों को ही नहीं हम सबको मुंह चिड़ाने लगा है। गत तीन सालों में हुयी हजारों घटनाओं की कथित जांच का परिणाम भी आज तक अज्ञात है।
भाकपा साफ़तौर पर कहना चाहती है कि सड़कों पर निकल पड़े इन मजबूर मजदूरों को अब सत्ताधारियों के उपदेशों और सहानुभूति की जरूरत नहीं है। उनकी पहली जरूरत है उन्हें जो जहां है वहाँ से पिक अप ( Pick Up ) कर घरों तक पहुंचाया जाये। इन तीन सालों में तीन तीन कांबड़ यात्राओं और अर्ध कुंभ को, कुंभ से भी बेहतर तरीके से आयोजित करने का श्रेय उत्तर प्रदेश सरकार लेती रही है। फिर इन कुछेक लाख मजदूरों की यह जानलेवा उपेक्षा किसी की भी समझ से परे है।
इन असहाय मजदूरों की मौतों पर मुआबजे की मांग तो की जाती रही है और की जानी ही चाहिये, लेकिन आज हम सरकारों से एक ही मांग कर रहे हैं कि- ‘जो भी मजदूर सड़क पर दिखे उसे उचित संसाधन से सुरक्षित घर पहुंचाया जाये। यह सरकार का कर्तव्य है और नैतिक दायित्व भी।