Nishan Publication

‘संवैधानिक मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में छात्र राजनीति की भूमिका’ विषय पर व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित

-छात्रसंघ से होता है युवाओं का सांस्कृतिक विकास – सुधांशु बाजपेयी 

-संवैधानिक मूल्यों के हनन पर सर्वप्रथम छात्रों ने उठाई आवाज़- सम्राट विद्रोही



सीतापुर- निशान पब्लिकेशन द्वारा आयोजित विमर्श श्रंखला कार्यक्रम के तहत ‘संवैधानिक मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में छात्र राजनीति की भूमिका’ विषय पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे|

सुधांशु बाजपेयी
                                 
लखनऊ विश्वविद्यालय के वरिष्ठ छात्र नेता सुधांशु बाजपेयी ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए छात्र राजनीति की महत्ता और उसकी चुनौतियों पर प्रकाश डाला| अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा कि छात्रसंघों ने हमेशा संवैधानिक मूल्यों को आगे रख कर काम किया है| नेहरु जी कहा करते थे कि छात्रसंघ लोकतंत्र की नर्सरी हैं| इन्हीं से युवा राजनीति का ककहरा सीखते हैं|

छात्रसंघ से ही युवा लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति आस्थावान होता है और उसका सांस्कृतिक विकास शुरू होता है| आज राजनीति में जितने भी नेता सक्रिय हैं उनमें लगभग दो तिहाई लोग छात्र राजनीति की ही उपज हैं| हालाँकि आज परिस्थितियां अलग हैं, छात्र राजनीति से निकले नेताओं ने ही परिवारवाद को बढ़ावा देकर छात्र आन्दोलन को कमज़ोर कर दिया| 

विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता धीरे धीर ख़त्म की जा रही है और उन्हें निजीकरण की ओर धकेला जा रहा है| इसकी वजह से छात्र आन्दोलन की धार कुंद होती जा रही है और छात्रों की आवाज़ दबती जा रही है| इसी का परिणाम है कि विश्वविद्यालयों में फीस निरंतर बढती जा रही है और गरीब तथा माध्यम वर्ग के छात्रों को सुगम-सुलभ शिक्षा से वंचित होना पड़ रहा है| जब छात्र लाखों रूपये का लोन लेकर कर उच्च शिक्षा प्राप्त करेगा तो उसे उस लोन को चुकाने के लिए कॉर्पोरेट का गुलाम बनना मजबूरी बन जाएगी| 

जहाँ पर आज छात्रसंघ मौजूद भी हैं तो वो केवल दिखावा मात्र हैं | बड़े बड़े राजनैतिक दल अपने मोहरों को विश्वविद्यालय में उतार देते हैं और वो जीतकर छात्रों के हित में कोई काम नहीं करते और केवल छात्रसंघ का ठप्पा लगाकर घूम रहे हैं| शिक्षा को आजकल मॉल कल्चर की तरह बना दिया गया है जहाँ आप जाकर देख तो सकते हैं लेकिन महंगा होने के कारण कुछ खरीद नहीं सकते| इसी तरह से आज की शिक्षा व्यवस्था हो गयी ही जहाँ आप चकाचौंध भरे संस्थानों को देख तो सकते हैं लेकिन लाखों रूपये फीस होने के कारण वहां एडमिशन नहीं ले सकते|

सम्राट विद्रोही

कार्यक्रम को लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता और डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता सम्राट विद्रोही ने भी संबोधित किया| अपने व्याख्यान में सम्राट विद्रोही ने छात्र आन्दोलन के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारतीय छात्र आंदोलनों को तीन चरणों में देखा जा सकता है- पहला आज़ादी के पहले के छात्र आन्दोलन, दूसरा आज़ादी के बाद की छात्र राजनीति और तीसरे चरण में नब्बे के दशक से वर्तमान समय तक हुए छात्र आन्दोलन को रखा जा सकता है| 

आज़ादी के पहले 1848 में दादाभाई नौरोजी ने स्टूडेंट लिट्रेसी एंड साइंटिफिक सोसाइटी की स्थापना की थी| ये संभवतः भारत का पहला छात्र संगठन था| आजादी के बाद 1973 में गुजरात से उठा छोटा सा छात्रों का आक्रोश धीरे धीरे बड़े आन्दोलन में परिणत हो गया, जो बाद में जेपी आन्दोलन के रूप में जाना गया| इसी आन्दोलन की बदौलत देश में आज़ादी के बाद पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई| नब्बे के दशक के बाद के प्रमुख छात्र आंदोलनों में से प्रमुख रूप से 2011-2012 को रखा जा सकता है जब अन्ना आन्दोलन और निर्भया कांड में छात्रों ने दिल्ली समेत पूरे देश में आन्दोलन किये थे| 

उन्होंने आगे कहा कि संवैधानिक मूल्यों पर जब भी आंच आती है तो सबसे पहले आवाज़ उठाने वाले छात्र ही होते हैं| देश की समस्याओं पर सबसे पहले छात्रों ने ही आन्दोलन कर लोगों का ध्यान आकृष्ट कराया है| वर्तमान समय में छात्रों को सिर्फ पाठ्यक्रम की पढाई ही नहीं करनी चाहिए बल्कि उससे इतर भी पढना चाहिए जिससे वर्तमान सामाजिक-राजनैतिक घटनाक्रम को समझा जा सके| 

कार्यक्रम में ज्ञान प्रकाश सिंह प्रतीक, एम सलाहुद्दीन, गदाधर प्रधान,  सिराज अहमद, मसीहुद्दीन संजरी, शहाब वहीद, नीतू सिंह, फ़राज़ हमीद, सुमित बाजपेयी, वहाजुद्दीन, अभिषेक गुप्ता, मोहम्मद कैफ, दीपलक्ष्मी, प्रदीप, सायली, शाहरुख़ अंसारी, मोहम्मद अशफाक, तुर्तन, आकर्षित सक्सेना, दार्शिक, रेहान अंसारी, सूरज गुप्ता समेत कई लोग मौजूद रहे|

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