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एक था शेख चिल्ली- अरविन्द राज स्वरूप

एक था शेख चिल्ली।

बचपन में शेख चिल्ली की कहानी सुनी थी।

एक था शेखचिल्ली। जमाने बहुत पुराने थे। उसको कहीं से 10 पैसे मिल गए ।उसनें 10 पैसे की  दही की मटकी खरीदी। मटकी पूरी भरी हुई थी ।उसनें मटकी को सर पर लादा और चल पड़ा। चिल्लाता हुआ। दही ले लो !दही ले लो!! वो चिल्लाता जाता था और सोचता जाता था। सोचता था कि मेरी मटकी की दही जब बिक जाएगी तो 10 पैसे से ज्यादा एकत्रित कर लूंगा। फिर और  मटकी लाऊंगा। फिर उसको बेचूंगा और इस तरह से कुछ दिनों में मेरे पास बहुत सारे पैसे हो जाएंगे मटकी से दही बेचते बेचते।
शेखचिल्ली की शादी भी नहीं हुई थी ।उसको इस बात का इल्म था कि जब पैसे जेब में होंगे तो शादी तो तभी होगी। सोचता था नहीं तो पत्नी की परवरिश कैसे  कर पाऊंगा । यह सब  वह निरंतर सोचा करता था ।
वह अपने  को बड़ा होशियार समझता  था, जितना वो था नहीं । खैर मटकी रखे वो चला जा रहा है और दिमाग में यह गुनताडा लगाए जा रहा है कि जब पैसे इकट्ठे हो जाएंगे तो मैं सुंदर सी लड़की से शादी कर लूंगा ।फिर मेरे बच्चे होंगे और बच्चे बड़े हो जाएंगे मेरे से पैसे मांगेंगे और यदि वह मेरे से पैसे मांगेंगे तो मेरे पास तो इतने पैसे होंगे नहीं तो मैं उनको मना करूंगा कि अभी पैसे नहीं दूंगा इस पर भी वह नहीं मानेंगे ।वह जिद करेंगे। बच्चे जिद करते ही हैं ।यही बिचारा सोचता  चला जा रहा था।
अब सोचते सोचते उसके दिमाग में तस्वीर चली कि बच्चे मान नहीं रहे हैं। बार-बार कुर्ता पकड़ कर खींच रहे हैं ।कह रहे हैं कि पैसा दो !पैसा दो !
उसको अचानक क्रोध आ गया और उस क्रोध में उससे बच्चों को बुरा भला कहा ।मारे क्रोध के उसके सर पर जो मटकी रखी थी वही मटकी उसनें बच्चों के ऊपर दे मारी। जो उससे बार-बार पैसे मांग रहे थे और इस तरीके से शेखचिल्ली की एक कहानी खत्म हुई।
नतीजा आप निकालें।
मुझे बरबस ये कहानी याद आ गई।
आइये हम इस वर्ष की होली के पहले के काल में चलें और यह याद रखें की होली 9 मार्च को जली थी और 10 मार्च को रंग गुलाल था।
फरवरी माह में भारत सरकार ने बड़ी घोषणा की थी और वह घोषणा थी कि हमारी अर्थव्यवस्था हम ऐसी बना देंगे कि जो 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी।
अब किस देशवासी को इस बात से ऐतराज  हो सकता है कि हमारी अर्थव्यवस्था काहे को केवल 5 ट्रिलियन डॉलर की हो, वह 10 ट्रिलियन डॉलर की हो जाए।
प्रत्येक देशवासी खुश तो हो ही सकता है ।गुलगुले ना मिलें उसके सपनें तो देखे ही जा सकते हैं और शेखचिल्ली की तरह सपने भी देख सकते है।
किसी अच्छे सपने को देखते समय जब आंख खुल जाए तो बड़ा अफसोस होता है कि आंख क्यों खुल गई।
डरावना सपना देखो और आंख खुल जाए तो बहुत सुकून मिलता है।
पर सपने तो बस सपने ही होते हैं।
सरकार के द्वारा जो फरवरी  2020 में यह घोषणा की गई कि हम अर्थव्यवस्था को 5  ट्रिलियन डॉलर की बना देंगे तो उस समय हमारी वास्तविक स्थिति क्या थी ?
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के विश्व आर्थिक सर्वेक्षण के परिदृश्य में अक्टूबर 2019 में  हमारी अर्थव्यवस्था और उसकी जीडीपी 2.94 ट्रिलियन डॉलर की थी यानी हमको 5 ट्रिलियन डॉलर के विकास को प्राप्त करने के लिए लगभग दुगनी छलांग की आवश्यकता थी।
फरवरी 2020 में ही आर्थिक मामलों से जुड़े सरकार के दोस्त अखबार  और मैगजीन यह बता रहै थे कि अगर 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था को प्राप्त करना है तो सरकार को इन्वेस्टमेंट बढ़ाना पड़ेगा और उस इन्वेस्टमेंट के जो क्षेत्र होंगे वह शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, शासन ,कानून व्यवस्था आदि। यह भी बताया जा रहा था यदि इन सब क्षेत्रों में क्षमताओं को बढ़ाना है तो उसके लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर तथा  भौतिक परिस्थितियों तैयार करनी पड़ेगी। जानकार इस बात का भी उल्लेख कर रहे थे कि भारत में विकास सब जगह एक सा नहीं है, भारत का आर्थिक विकास बड़ा अलग-अलग और असमान  है ।इसके कारण विकास की प्रक्रिया और भी जटिल हो जाती है।किसी क्षेत्र में विकास रुका हुआ होगा ,किसी क्षेत्र में विकास की गति बहुत धीमी होगी, किसी क्षेत्र में तेज होगी ,कहीं विकास रुक रुक कर होगा ।इस कारण विकास की गति सब जगह सामान्य नहीं होती और इस आर्थिक कारण से समाज में आर्थिक खाई भी बढ़ती है जिससे  सामाजिक तनाव भी सामने आते हैं।
2019 के लोकसभा के चुनाव के पश्चात 30 मई को केंद्रीय सरकार का 1 वर्ष पूरा हो चुका है।  वास्तव में 29 मई दिन शुक्रवार को ही 1 वर्ष हो गया है। भारतीय जनता पार्टी , जिसकी केंद्रीय सरकार है, उसके पदाधिकारियों की घोषणा के अनुसार 30 तारीख को 1 वर्ष पूरा होने की खुशी में उन्होंने अपना कार्यक्रम भी आयोजित किया है।
29 मई के शुक्रवार को जब लाखों मज़दूरों के दर्द को दरकिनार कर  भारतीय जनता पार्टी की सरकार एकं वर्ष पूर्ण होने का जश्न मना रही थी तो वास्तव में शेख चिल्ली का घड़ा फूट गया ।उसी दिन भारत सरकार के द्वारा देश की अर्थव्यवस्था के बारे में नवीन आंकड़े प्रस्तुत कर दिए गए।
आइए जरा उन आंकड़ों को भी देखें।
वित्त वर्ष 2019 -20 मैं जीडीपी की दर कुल 4.2% रही है और जनवरी से मार्च की तिमाही में यह दर कुल 3.1% रही ।अर्थशास्त्रियों का आकलन है कि यह वर्ष 19-20 की आर्थिक वृद्धि की दर पिछले 11 वर्षों में सबसे कम है और पिछले 11 वर्षों में 7 वर्ष तो  मोदी सरकार के उसी दिन पूरे हो गए थे जिस दिन सरकार ने इन नवीन आंकड़ों को जारी किया।
बोली बोलने में और उसका ढिंढोरा पीटने में और मीडिया के प्रचार माध्यम से उसका दिन रात 24 घंटे प्रचार करवाने में तो किसी का कोई जाता नहीं है।
हां अलग बात है कि सरकार को उन समस्त मीडिया हाउसेस को पालने के लिए मोटे विज्ञापन देने पड़ते हैं ताकि वह 24 घंटे उसके झूठ सच का गुणगान करते रहे 
5 ट्रिलियन ही क्यों ?
50 ट्रिलियन कह दीजिए ।कहना ही तो है।
पर एक बड़े पते की बात है कि अर्थव्यवस्था घोषणाओं से नहीं चलती है ।उसके कुछ नियम है और उन नियमों के बारे में अर्थशास्त्रियों को अच्छा खासा ज्ञान है ।तो इसलिए हम तो यहां पर चर्चा अर्थशास्त्रियों ने जो बातें कही हैं उन्हीं को दोहरा कर कर रहे हैं ताकि लोगों को यह बात पता लगे।
करोना की महामारी आने के पहले वास्तविकता यह है की पिछली 8 तिमाहियों में विकास दर निरंतर घटती जा रही थी और वित्तीय वर्ष 19-20 की अंतिम तिमाही में तो यह दर घटकर 3.1 % हो गई और जब पूरे वर्ष की विकास दर का आकलन हुआ तो पता लगा हमारे देश की अर्थव्यवस्था 4.1% पर की जाम हो गई है। यह नोट करने की बात है की अर्थव्यवस्था का 4.1% पर जाम होना करोना की महामारी के आने के पहले का है ।यानि इसका स्पष्ट अर्थ है कि सरकारी नीतियों के कारण हमारे देश की अर्थव्यवस्था में करोना का वायरस तो पहले ही प्रवेश कर चुका था और हमारे लाल बुझक्कड़ और सरकारी ओझा झाड़ फूंक करने वाले लोग अपने को खुश करने के लिए और जनता के बीच में एक खुशहाल तस्वीर पेश करने के लिए 5 ट्रिलियन की बात करने लगे ।अब कौन उनको रोक सकता है ।बोलने से तो कोई किसी को रोक ही नहीं सकता ।जब आर्थिक तथ्य आते हैं सामने तभी बोलने पर कुछ विराम लग भी सकता है।
हम अपनी बात को और आगे जारी रखते हैं। अर्थशास्त्र की जानकारी रखने वाले रिसालों ने लिखा कि अप्रैल-जून की तिमाही वित्त वर्ष 20- 21 मैं विकास दर और भी नीचे जाने की संभावना है।
स्मरण रहे कि वर्ष 2019 - 20 के लिए सरकार और रिजर्व बैंक ने विकास दर को 7% तक ले जाने का लक्ष्य रखा था और बजट के पेश हो जाने के बाद सितंबर 2019 में वित्त मंत्री ने कारपोरेट टैक्स को घटाने और सैकड़ों उत्पादों पर जीएसटी कम करने की घोषणा की थी ।वित्त मंत्री ने बजट को पेश करते हुए यह भी एक बड़ी बात कहते हुए कहा था कि नॉमिनल विकास दर 10 परसेंट भी की हो सकती है। का भी हवाला दिया था।
पर सब बातें हवा हवाई हो गई।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के वर्तमान गवर्नर शक्तिकांत दास जो एक अर्थशास्त्री नहीं है और उनकी विद्वता का विषय कोई अलग है।उन्होंने  अभी हाल ही में कहा कि मांग और आपूर्ति का संतुलन बिगड़ गया है और उसने अर्थव्यवस्था को भारी विपरीत धक्का मारा है । रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने वित्त वर्ष 2020- 21 में विकास की दर को नकारात्मक आने वाली दर की ओर इशारा किया है । उसकी हिम्मत ना हुई कि वह बताता, अंदाजा लगाता , कि वह विकास दर क्या होगी ? दरसल अंदाजा तो लगाए बैठे हैं पर वह क्या करें देश की सरकार ने तो 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था को वर्ष  2025 तक बनाने का ऐलान किया हुआ है!
वास्तविकता तो यह है की आर्थिक मंदी की मार ने देश में गरीबी और बेरोजगारी को करोना आने के पहले ही बढ़ा दिया था ।करोना के आने के बाद तो पिछले दो महीनों में जो देश में हुआ है वह कभी 70 वर्षों में नहीं हुआ । महामारी आती, जो होता ।
पर केंद्रीय सरकार ने जिस प्रकार उस वर्ग की रीड को तोड़ा जिसके उत्पादन से देश की वृद्धि दर बढ़ती है वह एक निर्दयी व्यवहार था।अनेकों उच्च न्यायलयों और सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार की सोच के  विपरीत निर्णय दिए और सरकारों को फटकारा।
इतिहास कदापि भी ऐसा करने वालों को माफ नहीं करेगा।
यही शेखचिल्ली की कहानी है।
घड़ा फूट गया!
भंडा भी फूट गया!

अरविन्द राज स्वरूप
राज्य सहायक सचिव
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
उत्तर प्रदेश


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