Nishan Publication

मजदूर, लाक डाउन एवं सरकार -अरविंद राज स्वरूप

प्रवासी मजदूरों के साथ जो बीत रही है वह आंखों के सामने देखा जा रहा है। हमनें देखा कि मोदी सरकार ने लॉक डाउन किया और  घोषणा के 4 घंटे के भीतर  पूरे भारत को बंद कर दिया।
महामारी के भय से उसका समर्थन सब के द्वारा किया गया।
परंतु यह आवाज अगले ही दिन से उठने लगी कि लाक डाउन की वजह से जो कारखाने बंद हो गए, जो काम धंधे बंद हो गए उनका क्या होगा? उन में काम करने वाले जो मजदूर कर्मचारी बेरोजगार हो गए, दिनभर की दिहाड़ी करने वाला मजदूर जो रोज कुआं खोदता है और पानी पीता है की तो बुरी हालत हो गई।
मरता क्या ना करता ! उसने अपनी मनुष्य जनित लाचारी में  निश्चय कर लिया कि वह उन शहरों में जहां वह काम करता है को छोड़कर अपने गांव को चला जाएगा ।
वो चल पड़ा।
केजरीवाल सरीखे सारे नेताओं का बड़ा बड़ा बोल धरा रह गया और उन सरीख़ों के विचारों का  पर्दाफाश भी हो गया।
इस भावना की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति हमने अपने - अपने टेलीविजन में देखी कि दिल्ली यूपी के बॉर्डर पर दिल्ली में बसे हुए हजारों मजदूर अपने गांव को जाने के लिए रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन पर एकत्रित हो गए।
परंतु उनको घर तक पहुंचाने के लिए सरकारों ने कोई एडवांस में व्यवस्था नहीं की। उसके बाद के दिनों का और आज 16 मई तक का  सारा  दृश्य कि  पूरे भारत से मजदूरों की अपने अपने गांव में जाने कोशिश हम सब लोगों की आंखों के सामने हैं ।
न जाने कितने मर गए।  376  तो रोड एक्सीडेंट में ही। कितने ही लोग बुरी तरह तबाह हो गए । लाखों लोगों की नौकरियां ,रोजी रोटी ,घर सब कुछ चला गया ।
1 मई से कुछ ट्रेनें चलाई गई ।
वह भी तब चलाई गई जब लाक डाउन शुरू होने से पूरे अप्रैल भर में मजदूर अपने अपने घरों के लिए जाने के लिए  जद्दोजहद कर रहे थे और पूरे देश में राजनीतिक पार्टियों ने , ट्रेड यूनियन संगठनों ने ,आम नागरिकों ने हल्ला मचाना शुरू किया तो सरकार को कुछ शर्म आई और तब उसने कुछ ट्रेनों को चलाने का फैसला किया। कुछ राज्य सरकारों ने बसों से मजदूरों को उनके गंतव्य तक भेजनें  का निर्णय किया।
लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न है कि लाक डाउन की घोषणा करने से पूर्व  क्यों नहीं भारत सरकार असेसमेंट कर सकी कि लाखों लोगों का विस्थापन होगा ।
इसलिए लॉक डाउन  करने से पूर्व कम से कम 1 हफ्ते या 10 दिन की मोहलत मिलती तो सारे प्रवासी मजदूर कर्मचारी या जो लोग तीर्थ के लिए भी गए थे ,अथवा वो लोग जो अपने-अपने शहरों से अपने-अपने कामों की वजह से बाहर थे ,वह सब अपने अपने घरों को लौट सकते थे। उनकी वह दुर्गति और दुर्दशा ना होती जो आज सबकी आंखों के सामने होती दिख  रही हैं ।
सरकार के बड़े-बड़े मंत्री, सरकार के भोपू चैनल उनके टॉमी महिला एवं पुरुष  एंकर चाहे सरकार की कितनी भी झूठी तरफदारी  करें ।
परंतु यह स्पष्ट है कि सरकार ने यह बिल्कुल नहीं सोचा कि देश के अंतिम पायदान का व्यक्ति भी इंसान हैं और जो लाखों की तादाद में अपने गांव से हजारों मील दूर विभिन्न उद्योग धंधों में काम करने के लिए गया हुआ है । लॉक डाउन होने से उसकी बेरोजगारी बढ़ सकती है और वह अपने गांव की ओर जाने के लिए उद्यत हो सकता है 
सारे मर्ज की जड़ सरकार की ये भारी चूक है। उसके लिए क्या देश उसको कभी माफ कर पाएगा?
मुझे नहीं लगता है ऐसा कभी होगा।
हद तो यह है कि समाज के अंतिम पायदान के व्यक्तियों के लिए कोई सहानुभूति के शब्द भी नहीं है ।
मैं प्रधानमंत्री जी को सुन रहा था उनके भाषण में बड़े-बड़े शब्दों का प्रयोग हो रहा था परंतु मैं यह सुनने के लिए तरस गया कि  प्रधानमंत्री जी उन मजदूरों के लिए कुछ सहानुभूति के शब्द कहेंगे जो इतनी तकलीफ से सड़कों पर है। कुछ मर गए हैं। पैदल हजारों मील चले जा रहे हैं ।जिनके पास फुटी पाई नहीं है ।जिनके पास खाने को नहीं है ।भूखे हैं ।जवान, बूढ़े ,स्त्री ,पुरुष, बच्चे सब सड़कों पर चले जा रहे हैं और राज्य उनको ट्रेन या बसें मुहैया नहीं करवा सकता ।
वैसे तो 14 तारीख को रेल मंत्री पीयूष गोयल टेलीविजन  पर अमुकअमुक  राज्यों के लिए 100 200 300 कुछ भी ट्रेन चला सकते हैं जैसी वाणी बोल रहे थे।
 बहुत खूब ।
श्री पियूष गोयल से प्रश्न पूछना चाहता हूं जो वो  अपनी पीठ थपथपा रहे थे कि हमने ट्रैन चला दी है ।
रेल मंत्री यह बताएंगे देश को कि उनकी और उनके सरकार की अकल कहां चली गई थी जब लाक डाउन घोषित करते समय 4 घंटे में आपने पूरे देश को बंद कर दिया।
आज देश में करोना  संक्रमित लोगों की संख्या 80 हजार के ऊपर पार कर गई है। प्रतिदिन वह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। चीन को भी आधिकारिक रिकॉर्ड  के अनुसार पार कर दिया ।अगर प्रवासी भारतीय समय से अपने घर पहुंच चुके होते और उसके बाद फिर भारत सरकार लॉक डाउन घोषित करती तो निश्चित रूप से संक्रमण का आंकड़ा इतना ना होता और इतनी भयानक तकलीफ जो पूरा भारत वर्ष देख रहा है वह देखी ना गई  होती।
 स्वयं प्रधानमंत्री की पीढ़ी ने ऐसा नजारा भारत देश में नहीं देखा है । देश के बंटवारे के समय आबादी का उधर से इधर और इधर से उधर जाना तो पुस्तकों में पड़ा है ,उनकी फोटो देखी है या कुछ पिक्चर देखी है या उन लोगों से सुना है जो हमारे माता-पिता की पीढ़ी के थे।
 एक और उदाहरण हमारे आंखों के सामने है, जो हमारे ही जीवन का है, जब बांग्लादेश का निर्माण हुआ तो हजारों लोग भारत में आ गए थे और उनकी भीड़ की तस्वीर भी अखबारों के जरिए हमारी आंखों के सामने है,
परंतु स्वाधीन भारत में एक ऐसी सरकार हो जो प्रतिदिन संस्कृति , राष्ट्रवाद की दुहाई देते हुए न थकती हो तो वह उन मूल्यों के प्रति भी पूरी तरीके से फेल हो चुकी है ।
इस सरकार के वर्गीय चरित्र में गरीबों और मजदूरों के प्रति सहानुभूति की बहुत कम गुंजाइश है ।
हम सब लोगों को यह बात भली भांति मालूम है कि देश का एक हिंदी दैनिक अखबार भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार का अनन्य समर्थक है और प्रचारक है और भी अनेकों है ।अखबार भी और टीवी भी। 
इस अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा कि प्रवासी मजदूर उसी तरह से संक्रमण को बढ़ाएंगे जिस तरह से संक्रमण को जमातियों ने बढ़ाया था। मजदूरों से सहानुभूति होना तो दूर उनको अज्ञानी जमातीयों के साथ खड़ा करके उनकी गरीबी का उनकी मुफलिसी का इस अखबार में बेहद मजाक उड़ाया है उनका बेहद अपमान किया है ।वह अखबार केंद्रीय सरकार का और भारतीय जनता पार्टी की हुकूमत का एक पक्का समर्थक और प्रचारक है ।उससे पता लगता है कि हवा किस तरफ चल रही है और  उच्चतम स्तर पर बैठे हुए लोग  किस प्रकार से अपनी सोच को अभिव्यक्त कर रहे हैं। 
प्रधानमंत्री जी के द्वारा 20 लाख करोड़ का पैकेज घोषित किया गया है इसमें लगभग 10 लाख करोड़ तो  पहले ही घोषित हो चुके थे अब 10 लाख करोड़ का और घोषित किया गया।
 प्रधानमंत्री जी के भाषण के पश्चात पिछले 3 दिन से वित्त मंत्री जी रोज प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रही हैं और घोषणाएं कर रही है ।उनकी घोषणा है ऐसी है कि वह साधारण आदमी की तो समझ में ही नहीं आ सकती।
किसानों और मजदूरों की बात तो जाने ही दीजिए  उस तिलिस्मी भाषा को अधिक पढ़े लिखे लोग भी  समझ नहीं पा रहे हैं।
पूरे पैकेज में अगर यह घोषणाएं होती कि हम साधारण जनता के लिए जब तक महामारी से देश मुक्त नहीं  हो जाता तब तक हम उसके भोजन की व्यवस्था करेंगे। गांव में जाने के पश्चात प्रवासी क्या काम करें ताकि उनकी कुछ आमदनी हो और अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें उसकी योजना होती। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि कम से कम ₹7500 प्रतिमाह  प्रति मजदूर को मुहैया करवाती ।भरे हुए गोदामों में से तमाम अनाज निकाल के पूरे संक्रमण काल में प्रत्येक परिवार को कम से कम 35 किलो अनाज उपलब्ध करवाती ।इसके लिए चाहे जितना भी पैसा खर्चा करना पड़ता उसको सरकार को वहन करना चाहिए था।जब लुटेरे पूंजीपतियों के लाखों करोड़ोँ के कर्ज़े बट्टे खाते में डाले जा सकते हैं तो ज़रूरत मंदों के लिए किया गया खर्च ही संस्कृति है और देश भक्ति है ।
यही आत्मनिर्भरता है।
परंतु सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया सरकार ने जो घोषणा की है वह बेहद नाकाफी है और उन बेहद नाकाफी घोषणाओं का ढोल दिन-रात, पिछले 4 दिन से चौबीसों घंटे पीटा जा रहा है। वास्तव में वह ढोल पीटना गरीब जनता का बार बार अपमान करता है।
 हम यह नहीं कह सकते हैं कि मध्यम दर्जे के उद्योग धंधों को चलाने के लिए सरकार पैकेज ना दे ।
परंतु उन समस्त इजारेदारी घरानों को सरकार को कुछ भी मदद कर देना छोड़ ही देना चाहिए था जिनके ऊपर बैंकों के अपार कर्ज़  हैं  और जिन की संपत्तियां हजारों करोड़ों में है ।जिनके औद्योगिक प्रतिष्ठान विशालकाय हैं। जिन्होंने इतनी अकूत मुनाफा कमाए हुए हैं कि अगर वह 1 साल तक भी मुनाफे न कमाए तो भी उनके कारखाने लड़खडदायेंगे  नहीं क्योंकि यह हकीकत है कि देश की 73% दौलत 1% रईस लॉगि के हाथ में केंद्रित है।
40-50 करोड़ लोगों के लिए पैकेज की धार होनी चाहिए थी।
यह उल्लेख करना उचित होगा कि विश्व की पूंजीवादी व्यवस्था में 2008 के बाद से तो मंदी चल ही रही है ।विश्व की अर्थव्यवस्था  तेजी से नहीं चल रही है नहीं तो अगर ऐसा ना होता तू यूरोपियन कॉमन मार्केट से यूनाइटेड किंगडम अपने आपको अलग न कर लेता।
 यूरोप की अनेक सरकारों  को अपने आप को दिवालिया घोषित ना करना पड़ता।
लॉक डाउन के पहले खुद भारत में अर्थशास्त्रियों ने जीडीपी की ग्रोथ को 5% के आसपास ही घोषित कर दिया था । तो बीमारी तो चल ही रही थी ।
यहां पर इसका भी इसका भी उल्लेख करना गलत ना होगा की डब्ल्यूटीओ  और वर्ल्ड बैंक के सारे नुस्खे फेल हो चुके है ।
दुनिया का सबसे धनी देश इस करोना काल में आर्थिक रूप से पिटा बैठा है । सरकारी मदद प्राप्त करने के लिए 30 लाख से अधिक लोगों ने अपनी दरखास्त लगाई है और बेरोजगारी भयानक रूप से बढ़ गई है।
इस सरकार के पास संकट हल करने का कोई रास्ता नहीं है ,कठिन हालात है और सरकार अपनी आलोचना भी नहीं सुनना चाहती है या उन सुझावों को भी नहीं स्वीकार करना चाहती जो वामपंथी और विरोध पक्ष की पार्टियां और नेता अथवा अर्थशास्त्री लोग अर्थव्यवस्था और लोगों की जिंदगी को संभालने और सुधारने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं ।
सरकार जो चाहे करें सरकार के अनेकों प्रवक्ता गण उसके मंत्री गण ,जो जी में आता है वह बोलते हैं। यहां तक कि हर प्रश्न को, यह भी कोशिश करते हैं ,कि वह बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक हो जाए ।
उसका कारण नीति नियंता जानते हैं कि उनके पास समस्या का हल करने का कोई कारगर उपाय नहीं है ।इसलिए जनता इस नतीजे पर न पहुंच जाए के वर्तमान शासन को केंद्र की सत्ता से चलता कर दे तो इसलिए उसकी सोच  और उसकी आर्थिक परेशानियों के तमाम मुद्दे दूसरे मुद्दों में डूबा दो ।उसमें सबसे आसान है धार्मिक सवालों  को खड़ा करना ।कोई दिन ऐसा नहीं जाता कि जब उनके प्रवक्ता कुछ ना कुछ ना  बोलते हो।
दुनिया का इतिहास इस बात का गवाह है कि शासक पार्टियां और शासक वर्ग अपने स्वार्थों की रक्षा करने के लिए बहुत कुछ ऐसा करते हैं जिससे आम लोगों के  हितों की रक्षा नहीं होती।
 इसलिए फिर आम लोग भी अपने हितों की रक्षा के लिए संघर्ष का संकल्प कर लेते हैं । दुनिया में ऐसा ही होता आया है। भारत में भी ऐसा होगा।
जनता के हजारों लोग आज उन प्रवासियों को खाना खिलाने उनके पैरों में चप्पल पहनाने जैसे तमाम काम कर रहै है। जिस सब काम को सरकार को करना चाहिए था।
जो कर रहे हैं  उनको  गरीबों के प्रति हमदर्दी है।वो कष्ट भीगते लोगों को इंसान समझते हैं।
जब साधारण लोग ऐसा कर सकते हैं तो सरकारें नहीं कर सकती हैं क्या? 
 सरकारें तो अपने लाव लश्कर के साथ अधिक संगठित रूप से कर सकती हैं। परंतु  इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारतीय जनता पार्टी की सरकार पूरी तरह से फेल हो चुकी है और इस सरकार के साथ-साथ उसके असंख्य आनुषंगिक संगठन भी फेल हो चुके हैं।
साथ ही सरकार देश को आत्मनिर्भर नहीं परनिर्भर बनानें के लिये करोना काल में जुटी हुई दिख रही है।

-अरविन्द राज स्वरूप
राज्य सहायक सचिव
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
उत्तर प्रदेश
M 9838001716

Post a Comment

Previous Post Next Post