होली के दूसरे दिन जब लोगों का मिलन चल रहा था उसी दौरान कांग्रेस के कद्दावर नेता जितिन प्रसाद की भाजपा से मिलन की खबरों से सियासी गलियों में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में कांग्रेस के बड़े नेता जितिन को मनाने में जुट गए। शाम होते-होते आखिरकार जितिन प्रसाद ने मीडिया के सामने बयान देकर बीजेपी में शामिल होने की खबरों को विराम दे दिया। हालांकि मीडिया में दिए बयानों से साफ दिखाई दिया कि वो पार्टी से नाराज हैं। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि पार्टी जितिन को लखनऊ से प्रत्याशी बना सकती है। चर्चा तो यह भी है कि जितिन-राजनाथ की टक्कर में गठबंधन यह सीट छोड़ सकता है। बदले में कांग्रेस धौरहरा में गठबंधन के प्रत्याशी के सामने अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी।

जितिन की नाराजगी की वजह
राहुल गांधी के करीबी नेताओं में शुमार किए जाने वाले जितिन प्रसाद एक समय यूपी कांग्रेस अध्यक्ष के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। लेकिन कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी को देखते हुए राजबब्बर को उत्तरप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर भेजा गया। जिसके बाद से ही जितिन प्रसाद पार्टी में खुद को कमजोर महसूस करने लगे। जितिन को उम्मीद थी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उनको बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। लेकिन प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रभारी बनाए जाने के बाद से जितिन प्रसाद की नाराजगी बढ़ने लगी। जितिन को उम्मीद थी कि कम से कम उनके क्षेत्र धौरहरा के आसपास की सीतापुर और खीरी संसदीय सीटों पर उनकी चलेगी। इन सीटों पर भी जितिन के मन मुताबिक प्रत्याशी नहीं उतारे गए। सीतापुर से कांग्रेस लोकसभा प्रत्याशी कैसरजहाँ को तो टिकट देने के आश्वासन के बाद ही पार्टी में शामिल कराया गया। पूर्व सांसद कैसरजहाँ को टिकट देने में प्रियंका गांधी की सीधे भूमिका रही। इधर जितिन को अपनी स्थिति तब और कमजोर लगने लगी जब सपा-बसपा गठबंधन ने पूर्व सांसद इलियास आजमी के पुत्र अरशद सिद्दीकी को मैदान में उतार दिया। भाजपा ने अपनी मौजूदा सांसद रेखा वर्मा को टिकट न देकर कोई मजबूत प्रत्याशी यहां से उतारने की रणनीति बनाई है। जानकारों का यह भी कहना है कि भाजपा जितिन को अपने पाले में लाना चाह रही थी। इसीलिए यह सीट छोड़ी गई थी। जबकि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जितिन को राजनाथ सिंह के सामने लखनऊ से उतारना चाह रहा था। जिसके लिए जितिन तैयार नहीं थे। हालांकि अब ऐसी खबरें आ रहीं हैं कि जितिन को राजनाथ सिंह के सामने हारने की स्थिति में कांग्रेस राज्यसभा भेजने का आश्वासन दे रही है।

जितिन का राजनैतिक सफर
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जितेंद्र प्रसाद के पुत्र जितिन प्रसाद शाहजहांपुर के ब्राह्मण राजवंश से सम्बन्ध रखते हैं। जितेंद्र प्रसाद 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री बने पीवी नरसिंहाराव के राजनैतिक सचिव थे। 1996 में जब सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो जितेंद्र प्रसाद को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया। अर्जुन सिंह और एनडी तिवारी ने मिलकर जब सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतारा तो जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया के सामने अपना दावा ठोंक दिया। जितेंद्र प्रसाद को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि बाद के दिनों में सोनिया गांधी ने जितिन की मां कांता प्रसाद को टिकट भी दिया। 2004 में जितिन प्रसाद को कांग्रेस ने शाहजहांपुर से टिकट दिया। यहां से जीतकर जितिन प्रसाद केंद्र में राज्यमंत्री बने। 2009 में परिसीमन के बाद बनी धौरहरा सीट पर भी जितिन ने जीत हासिल की।

इस दौरान जितिन के पास केंद्र में सड़क एवं परिवहन, पेट्रोलियम और इस्पात जैसे अहम मंत्रालय रहे। 2014 में मोदी लहर के दौरान भी जितिन को जीतने की उम्मीद थी कि तभी भाजपा प्रत्याशी अरुण वर्मा की मौत हो गई। भाजपा ने अरुण की पत्नी रेखा वर्मा को मैदान में उतारा। बसपा से दाऊद अहमद सामने थे। मुस्लिम वोट के बिखराव और रेखा वर्मा के प्रति जनता की सहानुभूति ने विकास पुरुष की छवि रखने वाले जितिन प्रसाद को हार का मुंह देखना पड़ा। 2017 के विधानसभा में जब सपा-कांग्रेस का गठबंधन था तब भी जितिन प्रसाद की हार हुई।
क्या रोक पाएंगे राजनाथ को ?
2014 लोकसभा चुनाव में धौरहरा सीट से जितिन प्रसाद सिर्फ 16 प्रतिशत मत के साथ चौथे स्थान पर रहे थे। उनके मुकाबले बीजेपी की रेखा वर्मा 34 प्रतिशत मत पाकर विजय हुई थीं। जितिन के मुकाबले बसपा और सपा के प्रत्याशी क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे थे। अब धौरहरा में गठबंधन से मुस्लिम प्रत्याशी सामने आ जाने के बाद से यह तय है कि भाजपा ध्रुवीकरण का खेल खेलेगी ऐसे में जितिन को सीट निकाल पाना बहुत मुश्किल लग रहा है। खबरों के मुताबिक अगर जितिन को लखनऊ से प्रत्याशी बनाया जाता है तब भी राजनाथ सिंह के सामने टिक पाना बड़ी चुनौती है।
वरिष्ठ पत्रकार ज्ञान प्रकाश सिंह 'प्रतीक' मानते हैं कि जितिन के लिए धौरहरा के बजाय लखनऊ ज्यादा बेहतर सीट रहेगी। क्योंकि 2014 के लोकसभा के चुनाव में सपा-बसपा के प्रत्याशी लगभग 1 लाख 20 हजार वोट के आंकड़े में सीमित रह गए थे। ऐसे में बहुत सम्भावना है कि गठबंधन जितिन की राह आसान कर सकता है। अब देखना दिलचस्प होगा कि जितिन प्रसाद अपनी परम्परागत सीट धौरहरा से लड़ेंगे या फिर ब्राह्मण-मुस्लिम वोटबैंक के सहारे राजनाथ के विजयी रथ को रोकेंगे।
रिपोर्ट- इम्तियाज़ अहमद