-लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पायी
यदि सरकार ने कोरोना से जंग के लिये नीतियां तय करने से पहले महामारीविदों और अन्य विशेषज्ञों से राय ली होती तो स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती। सरकार को सलाह देने वाले लोगों में अनुभव की कमी थी, जिस कारण यह स्थिति हुयी। उदाहरण के तौर पर यदि तालाबंदी से पहले श्रमिकों को घर वापस जाने की अनुमति दी जाती तो पूरी योजना के साथ उन्हें भेजा जा सकता था। लेकिन अब देश के हर कोने में जिस तरह मजदूर पहुंच रहे हैं, इससे गांव, कस्बों और शहरों में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं।“
यह बेवाक कथन किसी विपक्ष के नेता का नहीं अपितु एम्स के चिकित्सकों और आईसीएमआर के विशेषज्ञों के एक 16 सदस्यीय दल द्वारा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को कोविड-19 महामारी के संबंध में सौंपी रिपोर्ट का हिस्सा है। स्पष्टतौर पर इस विस्तारित रिपोर्ट में लाकडाउन से पहले सरकार की तैयारियों पर गंभीर सवाल उठाये गये हैं। विशेषज्ञ कमेटी के ये निष्कर्ष कोविड-19 से निपटने में केन्द्र सरकार की समूची रणनीति के खोखलेपन को उजागर कर देते हैं। तालाबंदी और उसके प्रारंभ में मोदी जी जब अपने प्रबुध्द अनुयायियों से थाली और ताली बजवा रहे थे, मोमबत्ती और पटाखे जलवा रहे थे, तब वामपंथियों और कुछ अन्य ने यह बता उठायी थी। किन्तु तब मीडिया, आईटी सेल और सोशल मीडिया द्वारा उन्हें ट्रोल कर इस तथ्य को दबा दिया गया। मोदी सरकार की यह बड़ी भूल आज आम जन और श्रमिक वर्ग के लिये महाविपत्ति बन कर उभरी है। इतना ही नहीं इन विशेषज्ञों ने सरकार को कोविड-19 संक्रमण के सामुदायिक प्रसार शुरू होने के प्रति भी आगाह किया है। उनका दावा है की देश के कई बड़े हिस्सों खासकर घनी आबादी वाले क्षेत्रों में यह पूरी तरह स्थापित हो चुका है। लेकिन अपनी नाक बचाने में जुटी सरकार दावे कर रही है कि देश सामुदायिक प्रसार से अभी भी दूर है। सच तो यह है कि दुनियां में कोरोना से अधिक प्रभावित देशों की सूची में भारत सातवें पायदान पर पहुंच चुका है। अतएव प्रधानमंत्री को सौंपी गयी विशेषज्ञ रिपोर्ट स्पष्टतः कहती है कि देश में कोरोना महामारी के मौजूदा स्तर को देखते हुये इस बात की उम्मीद अवास्तविक है कि इसे पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है। संक्रमण का सामुदायिक संचरण देश के एक बड़े हिस्से में पहले ही शुरू हो चुका है। विशेषज्ञों ने कहा, देशव्यापी कड़े लाकडाउन से अपेक्षा थी कि योजनाबध्द तरीके से एक खास अवधि में बीमारी पर काबू पाया जाये और मामलों को बढ़ने से रोका जाये। साथ ही ऐसा प्रबन्धन किया जाये कि आम स्वास्थ्य सेवा प्रणाली भी प्रभावित न हो। पर ऐसा हो न सका। अपितु लाकडाउन के चार चरणों में अर्थव्यवस्था और आम जनजीवन को पर्याप्त हानि और असाधारण असुविधा हुयी। अन्य कई सनसनीखेज बातों के अतिरिक्त विशेषज्ञ समिति ने आरोप लगाया है कि महामारी से संबंधित तथ्यों को विशेषज्ञों और जनता के साथ खुले और पारदर्शी तरीके से अभी तक साझा नहीं किया गया। समिति ने इसे जल्द से जल्द साझा किये जाने की अपेक्षा की है। समिति ने महामारी के संबंध में 11 सिफ़ारिशें भी जारी की हैं। विशेषज्ञों की इस रिपोर्ट के खुलासे से सरकार में हड़कंप मच गया है। जनता को साधने के लिये स्थानीय जन प्रतिनिधियों एवं पार्टी पदाधिकारियों को जनता के बीच जाकर सरकार की इस नाकामी पर पर्दा डालने के कोशिश की जिम्मेदारी दी गयी है। समूची सरकार, भाजपा, संघ परिवार और पार्टी कार्यकर्ता जो महामारी की कमर तोड़ने के लिये मोदीजी के करिश्मे और लाकडाउन को एकमात्र उपाय बता रहे थे, आज पूरी तरह पलटी मार गये हैं। अब सारी ज़िम्मेदारी जनता पर डाल दी गयी है। आज कहा जा रहा है कि लाकडाउन कोरोना वायरस महामारी का कोई समाधान नहीं है। देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिये मोदीजी ने लाकडाउन खत्म करके अनलाक-1 लगाया है। जनता खुद सावधानी बरते और महामारी को हराये, आदि आदि। इसी को कहते हैं चित्त भी मेरी और पट्ट भी मेरी। सरकार अपने साधनों और प्रचार तंत्र के बल पर भले ही अपनी बिगड़ी छवि को सुधार ले पर देश के आर्थिक ढांचे को जो क्षति पहुंची है उसकी जल्दी भरपाई संभव नहीं। और लाकडाउन तथा घर वापसी में देश के अस्सी करोड़ मेहनतकशों और सामान्य जनों ने जो असहनीय और अपार पीड़ा झेली है उसका निदान किसी मरहम से संभव नहीं। शासकों की एक चूक ने सब कुछ तहस- नहस और अस्त- व्यस्त करके रख दिया है। ठीक ही कहा है किसी ने- ‘लमहों ने खता की थी, सदियों ने सजा पायी।‘