Nishan Publication

भारतीय संविधान एक जीवित दस्तावेज़ - फ़ुज़ैल अय्यूबी

निशान पब्लिकेशन विमर्श श्रृंखला में वक्ताओं ने संवैधानिक मूल्यों का समझाया महत्व

सीतापुर- आज़ादी के बाद से अब तक बीते 70 सालों में संविधान ने हर नागरिक को उसके मूल्यों को आत्मसात कर आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध कराये हैं। हालाँकि संविधान का निर्माण जिस पावन उद्देश्य से किया गया था उस उद्देश्य की अभी तक शत-प्रतिशत प्राप्ति नहीं हो पाई है। ये बात सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता फुजैल अय्यूबी ने निशान पब्लिकेशन द्वारा आयोजित संवैधानिक विमर्श श्रृंखला के पहले भाग में आयोजित वेबिनार में कहीं।

विमर्श में अपना व्याख्यान देते सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता फ़ुज़ैल अय्यूबी

 उन्होंने कहा कि नागरिक के अधिकार और कर्तव्यों की परिकल्पना संविधान का एक महत्वपूर्ण अंग है। संविधान की प्रस्तावना जिसे संविधान की आत्मा भी कहा जाता है, में वर्णित स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय जैसे संवैधानिक मूल्यों की नींव पर ही हमारा संविधान आधारित है। वर्षों की गुलामी से जब हमें आज़ादी मिली तो हमारे लिए स्वतंत्रता जैसे मूल्य को आत्मार्पित करना अवश्यम्भावी हो गया। आज़ादी का मतलब सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक और व्यक्तिगत हर तरह की आज़ादी।  जब ये आज़ादी नागरिक को मिली तो एक स्वस्थ लोकतंत्र निर्माण की दिशा में हम एक क़दम और आगे बढ़े। वर्तमान परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में आज़ादी के व्यापक पहलू को समझना बेहद ज़रूरी हो जाता है। आज़ादी हमेशा से एक व्यक्तिगत अवधारणा रही है। हमारा संविधान हमें व्यक्तिगत तौर पर धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक आज़ादी मुहैया करता है। जब यही आज़ादी संस्थागत रूप में परिणत होती है तो उसका स्वरुप और उद्देश्य बदल जाता है। 

हमारा संविधान एक जीवित दस्तावेज़ है, जो नागरिक को उसके संवैधानिक मूल्यों के आधार पर सशक्त जीवन की सुरक्षा देता है। हालाँकि बदलते परिवेश में देश की ज़रूरतों के लिहाज़ से नीति नियंताओं को देश को एक घर की तरह मानकर सबको साथ लेकर चलने की ज़रूरत है।

संवैधानिक मूल्यों पर बात रखते वरिष्ठ पत्रकार केजी त्रिवेदी


वहीँ दूसरे वक्ता वरिष्ठ पत्रकार केजी त्रिवेदी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि भारतीय समाज की विभिन्नता और घोर असमानता को देखते हुए संविधान का अति आदर्शवादी रूप प्रायोगिक तौर पर सही नहीं है। इसमें मौजूद लूपहोल से संविधान का मनमाना इस्तेमाल किया जा रहा है। चारों संवैधानिक मूल्यों को आगे कर उसके नाम पर संस्थाएं तानाशाही रवैया अपनाती जा रही हैं। आज देश में घोर असमानता व्याप्त हो गयी है। देश का अमीर और गरीब दोनों के बीच की खायी बढती जा रही है। उन्होंने आगे कहा कि सेना में हमेशा गरीबों के बच्चों को सीमा पर मरने भेज दिया जाता है। बड़े पूंजीपतियों और राजनेताओं के बच्चों की सेना में भर्ती को अनिवार्य कर उन्हें भी सीमा पर लड़ने भेजा जाए। जिससे राजनेताओं की कथनी और करनी का अंतर मिट सके। उन्होंने संविधान में व्याप्त खामियों का ज़िक्र करते हुए इसके रिव्यू की मांग रखी।

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